मै वक्त हूँ फिर न वापस आऊंगा
जब बेला आएगी अलविदा कह जाऊंगा ।
तेरी तुम फिर अब देख लो
कुछ बचा है! तो तुम समेट लो
तुम देख लो क्या लाए थे!
तुम सोच लो क्या पाए लिए!
क्या मिल गया जो ठहर गए!
क्या कर लिया जो यूँ बिफर गए!
तुम किस नगर में ढल गए…
तुम किस डगर को चल दिए।
तुम किस कदर के ढीठ हो
ना जीत की तुझमे आग है,
ना प्रीत की तुझमे राग है,
सांत्वना बस अपरम्पार है।
तुम सोचते हो क्या हो जाएगा!
जो नसीब में है सब मिल जाएगा!
वो क्या है जिस पर गुमान है!
क्या अंतिम तेरी यही उड़ान है!
अंगीकार तुझे इस बात का हो
की तुम शुन्य पर सवार हो।
बहानों से भरे तेरे तिलिस्म मे,
तुम आत्ममुग्धता के शिकार हो।
तेरे बाजुओं में क्या दम नहीं
या जीत का अवचेतन नहीं!
जब सब छोड़कर तुम जाओगे!
किस बात पर आह्लाद पाओगे!!
तुम्हें किस कमी की शिकायत है?
जो नहीं मिला, तो नहीं मिला
जो नहीं किया, तो नहीं किया
ये सोच कर तु गिला न कर।
सब रिवायतों को तुम तोड़कर
सब जकड़नो को तुम छोड़ कर
जो पल बचा उसे सब जोड़ कर
प्रतिज्ञा तुम अब कठोर कर!
प्रचंड धीर अब बनेगा तुम।
न थकेगा तुम, न रुकेगा तुम।
कमजोरियों को तज़ कर सब,
श्रम की पराकाष्ठा करेगा तुम।।
मै वक्त हूँ फिर न वापस आऊंगा
नादान हो! मुझे जुमला समझ लो!
सुजान हो! मेरे इश्क़ मे पड़ लो।
मै वक्त हूँ नाम तेरा स्वर्णाक्षर से लिखऊँगा।
कविता By शशि कुमार ‘आँसू’

संघर्ष तेरा हो तो क्यूँ नहीं वो राम सा हो
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प्रयत्न तेरा हो तो क्यूँ नहीं वो श्याम सा हो।
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